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नज़्म
नई तहज़ीब ने बर्बाद ग़ारत कर दिया बिल्कुल
हम अपने मुल्क से अब इस को ग़ारत कर के छोड़ेंगे
अहमक़ फफूँदवी
नज़्म
क्यूँ ज़ियाँ-कार बनूँ सूद-फ़रामोश रहूँ
फ़िक्र-ए-फ़र्दा न करूँ महव-ए-ग़म-ए-दोश रहूँ